आर.
के. लक्ष्मण में बचपन से चित्रांकन करने का जुनून था। घूमने-फिरने की उन्हें पूरी
आजादी थी। वे बचपन में आसमान में बादलों
को देखा करते थे, तो उनमें, उन्हें बड़ी-बड़ी आकृतियों ने मुझ उनसे कहा ‘तुम
दुनिया में जाओगे तो अपनी कलम और तूलिका से ऐसे चुभते हुये कार्टून बनाओगे, जिनमें लोगों को अपनी विकृतियों के दर्शन हो सकें,
जिन्हें देखकर लोग तिलमिला उठें।’ आर. के. लक्ष्मण के
कार्टूनों में दिखने वाले आम आदमी के प्रति लोग जिज्ञासु होंगे। जब देश 1947 में
विभाजन हुआ था तो उसी साल लक्ष्मण ने ‘फ्री प्रेस जर्नल’ में दाखिला पाया। इस देश में आम-आदमी के सामने बड़ी-बड़ी समस्याएं थीं।
गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी थी। लेकिन आम आदमी के पास कोई
आवाज नहीं थी। दरअसल उस वक्त लक्ष्मण को लगा आम-आदमी को कोई आवाज मिलनी चाहिए।
लक्ष्मण जो कार्टून बनाते थे उसमें लोगों की भीड़ होती थी। दरअसल अखबार में काम
करने वाले आदमी के लिए वक्त की पाबंदी का होना जरूरी है। लक्ष्मण कहते हैं, धीरे-धीरे मेरे कार्टूनों में आम आदमियों के आकृतियों की तादाद घटने
लगी-बीस से पंद्रह, पंद्रह से दस, दस
से पांच और फिर उनमें एक आदमी रह गया, जो सबका प्रतीक बन
गया। वह दिन था 24 दिसंबर 1951 को आम आदमी का जन्म हुआ। प्रस्तुत शोध आलेख में आर.
के. लक्ष्मण के कार्टूनों पर अध्ययन किया गया है और आम आदमी को समझने की कोशिश की
गयी है। इस आलेख में गुणात्मक शोध प्रविधि का उपयोग करते हुये अंतर्वस्तु विश्लेषण, साक्षात्कार और अवलोकन उपयोग किया
है।
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