आपदा प्रबंधन में जनसंपर्क की भूमिका

                                         आपदा प्रबंधन में जनसंपर्क की भूमिका 


प्रस्तुत लघुशोध प्रबंध मेरा विषय आपदा प्रबंधन में जनसंपर्क की भूमिका का व्यवस्थित अध्ययन है
अध्ययन की आवश्यकता
आपदा प्रबंधन के दो महत्वपूर्ण आंतरिक पहलू हैं। वह हैं पूर्ववर्ती और उत्तरवर्ती आपदा प्रबंधन। पूर्ववर्ती आपदा प्रबंधन को जोखिम प्रबंधन के रूप में जाना जाता है।आपदा के खतरे जोखिम एवं शीघ्र चपेट में आनेवाली स्थितियों के मेल से उत्पन्न होते हैं। यह कारक समय और भौगोलिक दोनों पहलुओं से बदलते रहते हैं। जोखिम प्रबंधन के तीन घटक होते हैं । इसमें खतरे की पहचान, खतरा कम करना ह्रास और उत्तरवर्ती आपदा प्रबंधन शामिल है।
आपदा प्रबंधन का पहला चरण है खतरों की पहचान इस अवस्था पर प्रकृति की जानकारी तथा किसी विशिष्ट अवस्थल की विशेषताओं से संबंधित खतरे की सीमा को जानना शामिल है । साथ ही इसमें जोखिम के आंकलन से प्राप्त विशिष्ट भौतिक खतरों की प्रकृति की सूचना भी समाविष्ट है। सूखा, बाढ़, चक्रवाती तूफानों, भूकम्प, भूस्खलन, वनों में लगनेवाली आग, ओलावृष्टि, टिड्डी दल और ज्वालामुखी फटने जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है, न ही इन्हें रोका जा सकता है लेकिन इनके प्रभाव को एक सीमा तक जरूर कम किया जा सकता है, जिससे कि जान-माल का कम से कम नुकसान हो। यह कार्य तभी किया जा सकता है, जब सक्षम रूप से आपदा प्रबंधन का सहयोग मिले। प्रत्येक वर्ष प्राकृतिक आपदाओं से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले देशों में भारत का दसवां स्थान है ।  इसके अतिरिक्त बढ़ती आबादी के प्रभाव क्षेत्र एवं ऐसे खतरों से जुड़े माहौल से संबंधित सूचना और डाटा भी आपदा प्रबंधन का अंग है।
इसमें ऐसे निर्णय लिए जा सकते हैं कि निरंतर चलनेवाली परियोजनाएं कैसे तैयार की जानी हैं और कहां पर धन का निवेश किया जाना उचित होगा, जिससे दुर्दम्य आपदाओं का सामना किया जा सके । इस प्रकार जोखिम प्रबंधन तथा आपदा के लिए नियुक्त व्यावसायिक मिलकर जोखिम भरे क्षेत्रों के अनुमान से संबंधित कार्य करते हैं। ये व्यवसायी आपदा के पूर्वानुमान के आंकलन का प्रयास करते हैं और आवश्यक एहतियात बरतते हैं।
जनशक्ति, वित्त और अन्य आधारभूत समर्थन आपदा प्रबंधन की उप-शाखा का ही हिस्सा हैं। आपदा के बाद की स्थिति आपदा प्रबंधन का महत्वपूर्ण आधार है। जब आपदा के कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है तब लोगों को स्वयं ही उजड़े जीवन को पुन: बसाना होता है तथा अपने दिन-प्रतिदिन के कार्य पुन: शुरू करने पड़ते हैं।
आपदा प्रबंधन के दो विभिन्न एवं महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। आपदा पूर्व व आपदा पश्चात का प्रबंधन। आपदा पूर्व प्रबन्धन को जोखिम प्रबन्धन के नाम से भी जाना जाता है। आपदा के जोखिम भयंकरता व संवेदनशीलता के संगम से पैदा होते हैं जो मौसमी विविधता व समय के साथ बदलता रहता है। जोखिम प्रबन्धन के तीन अंग हैं। जोखिम की पहचान, जोखिम में कमी व जोखिम का स्थानान्तरण किसी भी आपदा के जोखिम को प्रबन्धित करने के लिये एक प्रभावकारी रणनीति की शुरूआत जोखिम की पहचान से ही होती है। इसमें प्रकृति ज्ञान और बहुत सीमा तक उसमें जोखिम के बारे में सूचना शामिल होती है। इसमें विशेष स्थान के प्राकृतिक वातावरण के बारे में जानकारी के अलावा वहाँ आ सकने का पूर्व निर्धारण शामिल है। इस प्रकार एक उचित निर्णय लिया जा सकता है कि कहाँ व कितना निवेश करना है। एक ऐसी परियोजना को डिज़ाइन करने में मदद मिल सकती है। जो आपदाओं के गम्भीर प्रभाव के सामने स्थिर रह सकें। अतः जोखिम प्रबन्धन में व इससे जुड़े पेशेवरों का कार्य जोखिम क्षेत्रों का पुर्वानुमान लगाना व उसके खतरे के निर्धारण का प्रयास करना तथा उसके अनुसार सावधानी बरतना, मानव संसाधन व वित्त जुटाना व अन्य आपदा प्रबन्धन के इस उपशाखा का ही अंग है।
जनसंपर्क का कार्य किसी भी संस्था की विशेषताओं और उसके उद्देश्यों को प्रस्तुत करने का एक वैज्ञानिक तरीका है। विभिन्न विद्वानों ने जनसम्पर्क को जनता से सम्बंध स्थापित करने की एक कला माना है। इस कला द्वारा सम्पर्ककर्ता अपने संस्थगत गुणों को उजागर करके एक योजनाबद्व विधि से जनसम्बन्धों को आधार बनाकर जनमत का निर्माण करता है ।संचार प्रत्येक सामाजिक प्राणी की मूलभूत आवश्‍यकता है, जिसके जरिए वह परस्पर भावों, विचारों, जानकारियों और ज्ञान का आदान-प्रदान करता है। एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के बीच संपर्क सेतू का काम करता है संचार और जनसंपर्क इसी संचार प्रक्रिया को निरंतर बनाए रखने की परिष्कृत कला है। जनसंपर्क एक ऐसी विधा है जो हमारे रोजमर्रा के जीवन से भी जुड़ी है। दरअसल जैसे ही आप सामाजिक होते हैं जाने-अनजाने जनसंपर्क के दायरे में आ जाते हैं । अमूमन प्रत्येक व्यक्ति दिन की शुरुआत से ही जनसंपर्क आरंभ कर देता है ।
समस्या कथन -
समस्या / अनुसन्धान की जननी है शोध अध्यन की मूल समस्याओं को अधोलिखित ढंग से प्रस्तुत लघुशोध आपदा प्रबंधन में जनसंपर्क की भूमिका ’’ का अध्ययन है .
अध्ययन का उद्देश्य -
          प्रस्तुत लघुशोध प्रबंध में आपदा प्रबंधन में जनसंपर्क की भूमिकाको पूरा करने के लिए निम्नलिखित परिकल्पनाएं निर्धारित की गयी है –
(1)  आपदा प्रबंधन की अवधारणा एवं स्थिति के बारे में अध्ययन करना ,
(2)   आपदा प्रबंधन के विभिन्न स्थरों पर प्रकाश डालना ,
(3)  जनसंपर्क की अवधारणा एवं कार्य क्षेत्र का अध्ययन करना ,
(4)  आपदा  और जनसंपर्क में अंतर सम्बन्ध पर प्रकाश डालना ,
(5)  आपदा प्रबंधन में जनसंपर्क की भूमिका पर निम्नलिखित विन्दुओं पर अध्ययन किया गया है,
शोध प्रविधि: -
प्रस्तुत लघुशोध प्रबंधन में अनुसन्धान एवं तुलनात्मक विधि अपनाया गया है, वर्तमान लघुशोधसैध्दांतिकप्रवित्तिका हैइसशोध को पूरा करनेमें प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों को लिया गया है
1.     प्राथमिक स्रोत :-
प्राथमिक स्रोत  के अंतर्गत वे सामाग्री आती है जो समस्या से प्रत्यक्ष रूप जुड़ीहो इसमें आकड़ो का स्रोत प्रत्यक्ष एवं मौलिक होता है
2.द्वितीयक स्रोत:
द्वितीयक स्रोत के अंतर्गत वे सामाग्री आती है जिनके मौलिक प्रमाण का वस्तु अभाव रहताहै, परन्तु उसका प्रमाण व विवरण अन्य संसाधनों में उपलब्ध रहता हैइसके अंतर्गत शोध से सम्बंधित विव्दानोंकी पुस्तके तथा सम्बंधित साहित्य अर्थात पत्र पत्रिकायों का आन्तरिक संगति के कार्य के आधार पर अध्ययन करके लघुशोध लेखन  कार्य किया गया है प्रस्तुत लघुशोध नवीन होने के कारण इन्टरनेट एवं वेबसाइट का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया गया है
अध्ययन का सीमांकन :
किसी भी कार्य को सम्पन्न करने में समय सीमा महत्वपूर्ण भूमिका है , निर्धारित समयावधि में किया गया कार्य ही सफल परिणाम की दिशा निर्देशित करता है प्रस्तुत लघुशोध हेतु चयनित शीर्षकसेसम्बंधित बिन्दुओं पर शोध सीमओं के अंतर्गत उतनी सामग्री में ही सुलभ करने का प्रयास किया गया है
प्रस्तुत लघु शोध परियोजना कार्य पी.जी.  (डिप्लोमा), द्वितीय छमाही जनसंपर्क एवं विज्ञापन विषय के अंतर्गत अनिवार्य तृतीय प्रश्न पत्र के रूप में  तैयार किया गया है , फिर भी शोधकर्ताने इस लघु शोध को यथा संभव उत्कृष्ट ढंग से पूरा करने का प्रयास किया गया है





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