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उड़िया पत्रकारिता का इतिहास

भारत के कई अन्य प्रांतों की तरह , उड़ीसा में पत्रकारिता की उत्पत्ति पहले मिशनरी गतिविधियों के बाद सुधारवादी और राष्ट्रीय आंदोलन में हुई। कटक में मिशन प्रेस को 1837 में नए नियम के अनुसार छापने के लिए स्थापित किया गया था , पहली उड़िया पत्रिका ज्ञानरुना (1849) और प्रबोध चंद्रिका (1856) को निकाला।             सन् 1866 में गौरी शंकर राय द्वारा उड़िया का पहला साप्ताहिक अखबार उत्कल दीपिका था। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उत्कल दीपिका ने राष्ट्रवाद के उदय को जन्म दिया। इसने उड़ीसा के सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 19 वीं शताब्दी के अंत में साढ़े तीन दशकों में उड़िया में कई समाचार पत्र प्रकाशित हुए , जिनमें प्रमुख थे।   कटक के उत्कल दीपिका , उत्कल पत्र और उत्कल हितैसिनी ; बालासोर से उत्कल दर्पण और सांबदा वाहिका , देवगढ़ से संबलपुर हितासिनी , आदि।   20वीं सदी के शुरुआती दौर में बंगाल में स्वदेशी आंदोलन को गति मिली थी और इसका उड़ीसा के राजनीतिक और सामाजिक जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा। इस अवधि को उड़ीसा के विभिन्न हिस्...

History of odiya journalism

History of odiya journalism As a media historian says: “If Gouri Shankar Ray was credited to have printed Odisha’s first newspaper Utkal Dipika in 1866, it was only in early 20th century that journalism got wider acceptance in Odisha following the publication of Asha”. Early history of Dainik Asha   In ancient times the region of Odisha was the center of the Kalinga kingdom, although it was temporarily conquered (c.250 B.C.) by Asoka and held for almost a century by the Mauryas. With the gradual decline of Kalinga, several Hindu dynasties arose and built temples at Bhubaneswar, Puri, and Konarak. After long resistance to the Muslims, the region was overcome (1568) by Afghan invaders and passed to the Mughal empire. After the fall of the Mughals, Odisha was divided between the Nawabs of Bengal and the Marathas. In 1803 it was conquered by the British1.   The Odia-speaking areas were then divided and tagged to the neighboring provinces of Bengal, Central ...

माउंटबैटन योजना, 3 जून 1947

माउंटबैटन योजना, 3 जून 1947 प्रस्तावना 1947 के प्रारंभ में साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहे देश तथा कांग्रेस एवं लीग के मध्य बढ़ते गतिरोध के कारण भारतीय राष्ट्रवादी विभाजन के उस दुखद एवं ऐतिहासिक निर्णय के संबंध में सोचने को विवश हो गये, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण मांग बंगाल एवं पंजाब के हिन्दू एवं सिख समुदाय की ओर से उठायी गयी। इसका प्रमुख कारण यह था कि यह समुदाय समूहीकरण की अनिवार्यता के कारण इस बात से चिंतित था उसे कहीं पाकिस्तान में सम्मिलित न होना पड़े। बंगाल में हिन्दू मह्रासभा ने पं. बंगाल के रूप में एक पृथक हिन्दू राज्य की अवधारणा प्रस्तुत की। 10 मार्च, 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि वर्तमान समस्या के समाधान का सबसे सर्वोत्तम उपाय यह है कि कैबिनेट मिशन, पंजाब एवं बंगाल का विभाजन कर दें। अप्रैल 1947 में भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष जे.बी. कृपलानी ने वायसराय को लिखा कि.“युद्ध से बेहतर यह है कि हम उनकी पाकिस्तान की मांग को मान लें। किन्तु यह तभी संभव होगा जब आप पंजाब और नंगल का ईमानदारीपूर्वक विभाजन करें।” माउंटबैटन वायसराय...
https://www.slideshare.net/swatiluthra5/sampling-ppt
प्रस्तावन एवं शोध प्रविधि  https://mail.google.com/mail/u/0?ui=2&ik=35281e7ad4&attid=0.3&permmsgid=msg-a:s:-1816791265515350163&th=16340c79123574a5&view=att&disp=inline&realattid=f_jgyooiwg2
https://mail.google.com/mail/u/0?ui=2&ik=35281e7ad4&attid=0.6&permmsgid=msg-a:s:2439147036557690304&th=1634b2fea3241eed&view=att&disp=inline&realattid=f_jh1kq8nu5