बुधवार, 25 जनवरी 2023

देश के किसानों के हालात में सुधार के लिए कौन बनेगा उनका गांधी?


अहिंसा के पुजारी वो, जुल्मों के खिलाफ आँधी थे

माँ भारती की संतान वो, बापू महात्मा गाँधी थे।

‘महात्मा’ यानी ‘महान आत्मा’। एक साधारण से असाधारण बनने वाले भारत के सपूत मोहन दास करमचंद गाँधी को रवींद्रनाथ टैगोर ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान ‘महात्मा’ की उपाधि दी। वैसे तो अनेक नेताओ ने अंग्रेजी शासन की नींव पहले से हिला रखी थी, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में गांधी के आगमन मात्र से ब्रिटिश हुकूमत काँप गई थी। मातृभूमि के लिए अथक प्रयास से भारत माता को स्वतंत्रता की सुगन्ध प्राप्त हुई थी।

दक्षिण अफ्रीका में बैरिस्टरी करते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठाने वाले भारतीय मोहन दास करमचंद गाँधी ने जब पहली बार खुद पर अंग्रेजों के द्वारा काले-गोरे के बीच होने वाले बर्बरतापूर्ण व्यवहार को झेला। उसी वक़्त उन्होंने ठान लिया था कि वे इस मंशा को बदलने के लिए आवाज उठाएंगे। 1915 में वह दक्षिण अफ्रीका से हिंदुस्तान लौटे। 1917 में चंपारण के राजकुमार शुक्ल ने लखनऊ जाकर महात्मा गांधी से मुलाकात की और चंपारण के किसानों को इस अन्यायपूर्ण प्रक्रिया से मुक्त कराने के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने का अनुरोध किया। गांधी जी ने उनका अनुरोध स्वीकार लिया।

19वीं सदी के अंत में रासायनिक रंगों की खोज और उनके बढ़ते प्रचलन के कारण नील की मांग कम होने लगी और उसके बाजार में भी गिरावट आने लगी। इस कारण नील बागान मालिक चंपारण के क्षेत्र में भी अपने नील कारखानों को बंद करने लगे। नील का उत्पादन किसानों के लिए घाटे का सौदा होने लगा। इसलिए, किसान नील बगान मालिकों से किए गए करार को खत्म करना चाहते थे। अंग्रेज़ बगान मालिकों के करार के अनुसार किसानों को अपने कृषिजन्य क्षेत्र के 20 भाग के तीसरे भाग पर नील की खेती करनी होती थी। इसे तिनकठिया पद्धति के नाम से जाना जाता था। अंग्रेज़ बगान मालिक भूमि को करार से मुक्त करने के लिए भारी लगान की मांग करने लगे, जिससे परेशान हो किसान विद्रोह पर उतर आए। उस वक्त उन्हीं के बीच के राजकुमार शुक्ल ने किसानों का नेतृत्व संभाला।

अप्रैल 1917 की दोपहर में बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के मोतिहारी रेलवे स्टेशन पर इकट्ठे हुए लोगों ने मोहनदास करमचंद गांधी की एक झलक देखी। उनके आगमन ने न केवल इलाके के लोगों के लिए अहम बदलाव को रेखांकित किया, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम को भी नयी धार दी। यह ऐतिहासिक मौका महात्मा गांधी के सत्याग्रह को मूर्त रूप देने का पहला प्रयास था।अहिंसक नागरिक प्रतिरोध के जरिए उन्होंने क्रूर ब्रिटिश हुकूमत और उसके शोषण को खुली चुनौती दी।

महात्मा गांधी, राजकुमार के अनुरोध पर चंपारण तो पहुंच गए लेकिन वहां की अंग्रेज प्रशासन ने उन्हें जिला छोड़ने का आदेश जारी कर दिया। गांधी जी ने इस पर सत्याग्रह करने की धमकी दे डाली, जिससे घबराकर प्रशासन ने उनके लिए जारी आदेश वापस ले लिया। चंपारण में सत्याग्रह, भारत में गांधी जी द्वारा सत्याग्रह के प्रयोग की पहली घटना थी। चंपारण आंदोलन में गांधी जी के नेतृत्व में किसानों की एकजुटता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने जुलाई 1917 में इस मामले की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया। गांधी जी को भी इसका सदस्य बनाया गया। आयोग की सलाह मानते हुए सरकार ने तिनकठिया पद्धति को समाप्त घोषित कर दिया। किसानों से वसूले गए धन का भी 25 प्रतिशत वापस कराया गया। इस आंदोलन के जरिए महात्मा गांधी ने लोगों के विरोध को सत्याग्रह के माध्यम से लागू करने का पहला प्रयास किया जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आम जनता के अहिंसक प्रतिरोध पर आधारित था।

महात्मा गांधी के लिए चंपारण आंदोलन का मुख्य केंद्र चंपारण के किसानों की दुर्दशा को दूर करने का था। महात्मा गांधी ने सक्षम वकीलों के साथ चंपारण जिले के लोगों को संगठित किया। उन्होंने जनता को शिक्षित करने में सक्रिय भूमिका निभाई और साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर आजीविका के विभिन्न तरीकों को अपनाकर आर्थिक रूप से मजबूत बनना सिखाया। यह आंदोलन न केवल ब्रिटिश हुकूमत द्वारा नील की खेती के फरमान को रद्द करने में सफल साबित हुआ बल्कि महात्मा गांधी के सत्याग्रह वाले असरदार तरीके के साथ भारत के पहले ऐतिहासिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन के तौर पर भी सफल साबित हुआ।

वर्तमान में भारतीय किसानों की दुर्दशा ऐसी है कि किसी को फसल नष्ट करना पड़ता है तो कोई तंग आकर खुद को ही नष्ट कर लेता । बिचौलिए भारत की तमाम व्यवस्था में घुन की तरह रचते-बसते जा रहे हैं। कहीं किसानों से उनके अनाज आधे दामों पर खरीद लिए जाते हैं तो कहीं उनकी उपजाऊ भूमि को कंपनियों या शहरों की शक्ल में ढाल दिया जाता।

किसान चाहे या ना चाहे किसी तरह मजबूर कर उनसे उनकी आत्मा, उनकी जमीन को कम दामों में खरीद सारे शहर गाँवों में घुस आए हैं। एक समय था जब गाँधी जी ने इनपर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठा इन्हें इंसाफ दिलवाया। आज हमारे देश की राजनीति का मुद्दा है ‘किसान’। भारतीय किसान बस पार्टियों के चुनाव जीतने का एक्का जान पड़ रहा। क्या आज कोई गाँधी है जो किसानों को उनके इस दुर्दशापूर्ण हालात से मुक्ति दिला पाए ? शायद बस वो एक गाँधी थे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

संचार शोध

देश के किसानों के हालात में सुधार के लिए कौन बनेगा उनका गांधी?

अहिंसा के पुजारी वो, जुल्मों के खिलाफ आँधी थे माँ भारती की संतान वो, बापू महात्मा गाँधी थे। ‘महात्मा’ यानी ‘महान आत्मा’। एक साधारण से असाधार...