सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

रेडियो का आविष्कार एवं विकास

 


आधुनिक संचार क्रान्ति में रेडियों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है रेडियो राष्ट्र की प्रगति का प्रमाणित जाख्यंता है यह राष्ट्र का दर्पण है रेडियो की अपनी विशिष्टता है रेडिया ने संचार की दुनिया में विशेष रूप से समाचार जगत में क्रान्ति ला दी है। उपग्रह तथा आधुनिक संचार तकनीक ने रामाचार ने दूरी तथा समय के अन्तर को पार कर दिया है। रेडियों के माध्यम से हमारे जीवन में सुचनाओं का विस्फोट हो रहा है उपग्रहों द्वारा प्रेषित सम्वाद रेडियो द्वारा सुना जा सकता है।

रेडियो अपनी प्रकृति में मुद्रण तथा श्रव्य दृष्टि दोनों ही माध्यमों से भिन्न है रेडियो की भिन्नता उसकी भाषा संदर्भ में व्यक्त होती है श्रव्य माध्यम होने के कारण रेडियों के कार्यक्रम केवल सुने जा सकते है। अतः उसकी भाषा का वैशिष्टय अलग तरह का होता है। या तो में कहा जाय कि उसे अलग तरह से प्रस्तुत किया जाना सम्भव होता है। इस कारण यह भी कहा जा सकता है कि रेडियो कि भाषा उसकी अपनी भाषा है। तकनीकी दृष्टि से रेडियो ध्वनियों का प्रसारण करता है। अतः जब हम जन संचार के क्षेत्र में केवल ध्वनियों के हमसे प्रदेश करते है तो श्रोताओं के मन में एक कल्पनालोक का सूजन करके ही आज्ञाओं को किती घटना की प्रतिच्छवि प्रदान कर सकते है। अत: रेडियो के माध्यम से ऐसी भाषा का प्रयोग आवश्यक होता है जो श्रोताओं के मन में विभिन्न बिंवों की रचना तुरंत करने में सक्षम होगी, उसी में रेडियो सम्प्रेषण द्वारा समाचार लिखा गया श्रेष्ठ होगे, यह एक स्वाभाविक बात है।

 रेडियो पर विशेष संगीत कार्यक्रम

रेडियो पर विशेष संगीत कार्यक्रम का आयोजन होता है। 6 से 14 साल के बच्चों के लिए लघु कथाएँ, नाटक, कविताएँ और कहानियाँ प्रसारित होती हैं। ग्रामीण एवं सरकारी शहरी महिलाओं के लिए उपयोगी एवं मनोरंजन परक बातचीत एवं गौटों का प्रसारण होता है। श्वेत और हरित क्रांतिकारी विकास खाद, बीज, भूमिशोधन, वर्गीकरण, भंडारन, टुकड़े, आधार आदि विषयों के संदर्भ में कृषि एवं गृह इकाइयों में सामायिक सूचना एवं परामर्शदाता हैं। 15 से 30 साल के पत्थरों का राष्ट्रीय विकास की मुख्य धारा से जुड़कर 'युव वॉयस कार्यक्रम' सुनाये जाते हैं। ऐसे तो हर केंद्र से युबा जगत के कार्यक्रम होते हैं लेकिन दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, जम्मू और कश्मीर के मंदिरों से 16 क्षेत्रीय गांवों में छात्र कार्यक्रमों का भी प्रसारण होता है जिसमें प्राथमिक, माध्यमिक, स्नातक स्तर की शिक्षा संबंधी चीजें शामिल होती हैं। मुक्त विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए संबंधित क्षेत्र में आकाशवाणी केंद्र से पाठ प्रसारित होता है।

रेडियो विभिन्न भारतीय सेवा के माध्यम से फिल्मी संगीत, भक्ति संगीत, सुगम संगीत, लघु मनोरंजन आदि मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित होते हैं। आकाशवाणी के प्राथमिक चैनल पर 20 जनवरी 1965 से 56 बजे तक प्रसारण किया गया। इन्टरनेशनल भारती तथा इसकी विज्ञापन प्रसारण सेवा द्वारा 15 मार्च 1992 को कई नये कार्यक्रमों को अपनाया गया। सुबह 725 मिनट पर चित्रशाला के स्थान पर एक टॉक हो रहा है जीना बहुत अच्छा है। इसमें फुल्के का प्रसारण होता है। आकाशवाणी से देश की पत्रिका में परिवार कल्याण कार्यक्रम का प्रसारण और सुखी परिवार की नीति होती है। एड्स, टीबी, और डेंगू पानी से पैदा होने वाले बीमारियों, मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम, बाध्यकरण, नसबंदी आदि पर महत्वपूर्ण कार्यक्रम प्रसारित किए गए। इन प्रसारणों में एकांकी, लघु कथाएँ, फीचर, गीत साक्षात्कार वीर कथाएँ आदि शामिल हैं। इन कार्यक्रमों में बच्चे अपने शैक्षिक और साक्षरता स्तर में कोई भेद लिए बिना भाग ले सकते है। आकाशवाणी के सभी केन्द्रों से ग्रानीय महिलाओं के साथ-साथ शहरी महिलाओं के लिए भी कार्यक्रम प्रसारित किये जाते है। परिवार कल्याण, गृह-प्रबन्ध उद्यमशीलता शिक्षा, पौढ़ शिक्षा पर रोचक कार्यक्रम प्रस्तुत होते हैं। ऊपर का पल्ला पोलियो टीकाकरण तथा एड्स तागरूकता पर शिक्षाप्रद कार्यक्रम प्रसारित होते रहे है।

          रेडियो प्रसारण के विकास-क्रम को तब तक अच्छी तरह नहीं जाना जा सकता जब तक कि टेलीग्राफ, टेलीफोन, वायरलेस के विषय में अच्छी जानकारी न प्राप्त हो जाय। टेलीग्राफ के अविष्कार सेम्यूजल एफ० बी० मोर्स सम्प्रेसण-जगत के जादूगर थे। वे मूलतः एक वित्रकार थे फिर भी विद्युत उपकरणों में उनकी रूचि थी। यान्त्रिक विधि से संदेश संचार सम्बन्धी टेलीवाल के संदर्भ में उनके सहयोगी अल्फ्रेड वेल ने उनकी आर्थिक सहायता की। सन् 1836-36 ई० में दोनों ने मिलकर 1700 फिट लम्बे तार के माध्यम से संदेश-प्रेषण कार्य किया। सन् 1843 ई में साइंस कांग्रेस की आर्थिक सहायता के फलस्वरूप वाशिंगटन से बाल्टीमोर तक टेलीग्राफ संदेश संचारित किया गया। सन् 1866 ई० में साइटस फील्ड के नेतृत्व में समुन्द्र पारीय केवल बनाया गया। उसी समय अमेरिका से यूरोप को गोर्स कोड सन्देश भेजा गया जो त्वरित अन्तर्राष्ट्रिय संचार का एक प्रारम्भिक चरण था। विद्युत तारों से कोड सन्देश के संवार की सफलता के बाद मनुष्य की आवाज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने की चर्चा प्रारम्भ हुई।

सन् 1861 ई० में जर्मनी के वैज्ञानिक फिलिप्स रीड्स शिकागों के वैज्ञानिक एलिशा वे ने बोलते तार की संकल्पना की। सन् 1874 ई० में वेस्टर्न यूनियन कम्पनी ने सर्व प्रथम सफलता प्राप्त की और टेली शब्द का प्रयोग हुआ। 14 फरवरी 1876 ई को अजेक्जेंडर पाहमवेल ने यूनाइटेड स्टेट्स पेटेन्ट ऑफिस में बोलते टेलीफोन के रजिस्ट्रेशन हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया। वेल टेलीफोन कम्पनी ने रेडियो को जन्म दिया जो संचार जगत् का एक महत्वपूर्ण पड़ाव सिद्ध हुआ।

इतावली इलेक्ट्रिकल इंजीनियर मारकोनी ने सन् 1995 में रेडियो का आविष्कार किया। सन् 1890 में उन्होंने एक मील की दूरी तक रेडियो संचार स्थापित करने में सफलता पाई। सन् 1896 ई० में इग्लैण्ड में उन्होने इस दिशा में आगे प्रयोग किये और मारकोनी वायरलेस टेलीग्राफ लिमिटेड नाम से अपनी कम्पनी की स्थापना की। पाँच वर्षों बाद सन् 1901 ई० में वह अटलाटिंक के पार पहला रेडियों संदेश भेजने में सफल हुए। सन् 1909 ई० में उन्हें भौतिक का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। तार के माध्यम से ध्वनि-प्रेषण के बाद जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने बेतार के के सन्देश पहुँचाने पर विन्तन-मनन किया। सन् 1888 ई० में हेनरिक हर्ज ने बेतार तरंगो के अस्तित्व को सिद्ध किया। उन्होंने बतलाया कि रेडियो तरंगो के समान पतवर्तित की जा सकती हैं। मीडियम वेव-हर्ट्ज पर यह आकाशवाणी का वाराणसी केन्द्र है। इस उद्‌घोषण द्वारा वैज्ञानिक जन्मदाता हर्दज के प्रति आभार ही व्यक्त करते है। इसी क्रम को आगे बढ़ाने में गुलेलियो मारकोनी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उसने हर्ज की प्रसारण विधि गोर्स की प्रयोग विधि को समन्वित कर एन्टीना द्वारा रेडियो ट्रांसमिशन को सम्भव बनाया। 2 जून 1996 ई को मारकोनी के वायरलेस का पेटेन्ट मिला और वायरलेस के सार्वजनिक प्रसारण का सूत्र पात्र हुआ। डी फारेस्ट ने 1906 ई० में एफील टावर के ऊपर से ध्वनि संगीत का प्रसारण कर यह सिद्ध किया कि हवा में तैरते स्वर को हम भाचित रूप दे सकते हैं। सन् 1916 ई में डेविड सरनाक ने प्रसारण को व्यावसायिक रूप देने में सफलता प्राप्त की तथा रेडियो म्यूजिक बॉक्स संचार और जनसंचार का प्रभावशाली मध्यम बन गया। रूना में 7 मई रेडियो दिवस' के रूप में जाना जाता है। सन् 1900 से 1904 तक एलेक्जेंडर पोपोव ने 'रसियन कॉन्फ्रेन्स ऑफ इलेक्ट्रिकल इंजीनीयरिंग के समक्ष मानव स्वर का प्रसारण किया। सन् 1910 ई० में रशियन ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी स्थापित हुई। 21 अगस्त 1922 को मारकों में रेडियो टेलीग्राफ स्टेशन ने कार्य शुरू किया तथा 27 जुलाई सन् 1924 में फीडम ऑफ ब्रॉडकास्टिंग लों की स्थापना हुई।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जनसंपर्क की अवधारणा क्षेत्र एवं कार्य

                                        जनसंपर्क की अवधारणा क्षेत्र एवं कार्य                                                           जनसंपर्क संचार की एक प्रक्रिया है ,   जिसमें जनता से संचार स्थापित किया जाता है। यह एक जटिल और विभिन्न क्षेत्रों की सम्मिश्रित प्रक्रिया है। इसमें प्रबंधन ,   मीडिया , संचार और मनोविज्ञान जैसे विषयों के सिद्धांत और व्यवहार शामिल है। जनसंपर्क की प्रक्रिया एक सुनिश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए की जाती है ,   जो एक सही माध्यम के द्वारा जनता से संपर्क स्थापित कर अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सही दिशा में अग्रसर होने में सहायक होती है। जनसंपर्क ऐसी प्रक्रिया है ,   जो सम्पूर्ण सत्य एवं ज्ञान पर आधारित सूचनाओं के आदान - प्रदान के लिए की जाती हैं। जनसंपर्क दो शब्दों   ‘...

गाँधी जी की पत्रकारिता

गाँधी जी की पत्रकारिता आने वाली पीढियां शायद ही विश्वास करे कि गाँधी जैसा हाड़-मांस का पुतला कभी इस धरती पर हुआ होगा। - अल्बर्ट आइन्स्टीन अहिंसा के पथ-प्रदर्शक, सत्यनिष्ठ समाज सुधारक, महात्मा और राष्ट्रपिता के रूप में विश्व विख्यात गाँधी सबसे पहले कुशल पत्रकार थे। गाँधी की नजर में पत्रकारिता का उद्देश्य राष्ट्रीय और जनजागरण था। वह जनमानस की समस्याओं को मुख्यधारा की पत्रकारिता में रखने के प्रबल पक्षधर थे। पत्रकारिता उनके लिए व्यवसाय नहीं, बल्कि जनमत को प्रभावित करने का एक लक्ष्योन्मुखी प्रभावी माध्यम था। महात्मा गाँधी ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत पत्रकारिता से ही की थी। गाँधी ने पत्रकारिता में स्वतंत्र लेखन के माध्यम से प्रवेश किया था। बाद में साप्ताहिक पत्रों का संपादन किया। बीसवीं सदी के आरम्भ से लेकर स्वराजपूर्व के गाँधी युग तक पत्रकारिता का स्वर्णिम काल माना जाता है। इस युग की पत्रकारिता पर गाँधी जी की विशेष छाप रही। गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रम और असहयोग आन्दोलन के प्रचार के लिए देश भर में कई पत्रों का प्रकाशन शुरू हुआ। महात्मा गाँधी में सहज पत्रकार के गुण थे | पत्रकारिता उनक...

History of odiya journalism

History of odiya journalism As a media historian says: “If Gouri Shankar Ray was credited to have printed Odisha’s first newspaper Utkal Dipika in 1866, it was only in early 20th century that journalism got wider acceptance in Odisha following the publication of Asha”. Early history of Dainik Asha   In ancient times the region of Odisha was the center of the Kalinga kingdom, although it was temporarily conquered (c.250 B.C.) by Asoka and held for almost a century by the Mauryas. With the gradual decline of Kalinga, several Hindu dynasties arose and built temples at Bhubaneswar, Puri, and Konarak. After long resistance to the Muslims, the region was overcome (1568) by Afghan invaders and passed to the Mughal empire. After the fall of the Mughals, Odisha was divided between the Nawabs of Bengal and the Marathas. In 1803 it was conquered by the British1.   The Odia-speaking areas were then divided and tagged to the neighboring provinces of Bengal, Central ...